*अमूल्य रतन* 304 अव्यक्त मुरली दिनांक: *22nd October 1970**रहे हुए पुरुषार्थ को पूरा करने के लिए* जितना स्वयं आवाज से परे होकर *संपूर्णता का आह्वान अपने में* करेंगे उतना आत्माओं का आह्वान कर सकेंगे। *आह्वान के बाद आहुति* बन जाए। *नॉलेज के तरफ आकर्षित होते हैं लेकिन नॉलेजफुल के ऊपर आकर्षित करना है।* *कारण देना* *कारण देना गोया अपने को कारागार में दाखिल करना है।* अब समय बीत चुका। अब कारण नहीं सुनेंगे। बहुत समय कारण सुने। लेकिन अब प्रत्यक्ष कार्य देखना है ना कि कारण। थोड़े समय के अंदर धर्मराज का रूप प्रत्यक्ष अनुभव करेंगे क्योंकि अब अंतिम समय है। _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |