*अमूल्य रतन* 289
अव्यक्त मुरली दिनांक: *27 July 1970*

*दो बातें धारण करना और एक बात छोड़ना*

*रूहानियत और ईश्वरीय रूहाब* धारण करना।
*नीचपना और‌ रोब* को छोड़ना है। दूसरा जो भिन्न-भिन्न रूप बदलते हो उनको छोड़कर एक *अव्यक्त और अलौकिक रूप धारण करो।*

*सफलता अर्थात्*

सफलता अर्थात् संपूर्ण गुण धारण करना। अगर सर्व बातों में सफलता है तो उसका नाम ही है संपूर्णमूर्त।
सफलता के सितारे बनने से सामना करने की शक्ति आती है।
सफलता को सामने रखने से समस्या भी पलट जाती है।

*समीप रत्नों के लक्षण*

समीप सितारों में बापदादा के गुण और कर्तव्य प्रत्यक्ष दिखाई पड़ेंगे।
उनको बापदादा का परिचय देने का प्रयत्न कम करना पड़ता है। क्योंकि वह स्वयं ही परिचय देने की मूर्त होते हैं।

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