*अमूल्य रतन* 25
अव्यक्त मुरली दिनांक: 17 अप्रैल 1969

*आपस में एक दो के मददगार बनने के लिए दो बातें धारण करनी है* सिर्फ बालक भी नहीं बनना है और सिर्फ मालिक भी नहीं बनना है संगम पर रहना है।

*बालकपन अर्थात् नीरसंकल्प* हो कोई भी आज्ञा मिले, डायरेक्शन मिले उस पर चलना।
*मालिकपन अर्थात् अपनी राय देना।* किस स्थान पर मालिक बनना है वह स्थान और बात देखनी है।

जहां बालक बनना है वहां मालिक बन जाते हैं तो *दो मालिक हो जाने से संस्कारों का टक्कर हो जाता है।* राय दी मालिक बने फिर जब फाइनल होता है तो बालक बन जाना चाहिए।