*अमूल्य रतन* 61
अव्यक्त मुरली दिनांक: 09 जून 1969
शीर्षक: *सुस्ती का मीठा रूप – आलस्य*

*परमार्थ से व्यवहार का सिद्ध होना*

सभी प्रकार की परिस्थितियों में रहते हुए, लौकिक और अलौकिक दोनों तरफ एक जितना वजन जरूर होना चाहिए। कम नहीं।

उस तरफ कम हुआ तो कोई हर्जा नहीं इस तरफ कम नहीं होना चाहिए।

*इससे फिर लौकिक जिम्मेवारी के कमी को भी ठीक कर सकेंगे।*

*परमार्थ से व्यवहार भी सिद्ध हो जाता है।* पहले व्यवहार को ठीक कर फिर परमार्थ में लगे। यह ठीक नहीं है।

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