*अमूल्य रतन* 59
अव्यक्त मुरली दिनांक: 09 जून 1969
शीर्षक: *सुस्ती का मीठा रूप – आलस्य*
*मुख्य श्रीमत*
यही है कि ज्यादा से ज्यादा समय याद की यात्रा में रहना। क्योंकि इस *याद की यात्रा से ही पवित्रता, दैवीगुण और सर्विस की सफलता होगी।*
*जिम्मेवारी का ताज*
जिम्मेवारी का ताज भी दिया हुआ है लेकिन कभी-कभी जानबूझकर भी उतार देते हैं और माया भी उतार देती है।
सतयुग में ताज इतना हल्का होता है जो मालूम भी नहीं पड़ता है कि बोझ सिर पर है।
*जितना जितना नजदीक (पुरुषार्थ में) होते जायेंगे, उतना उतना नजारे (सतयुग के) भी नजदीक होते जायेंगे।*