*अमूल्य रतन* 57
अव्यक्त मुरली दिनांक: 09 जून 1969
शीर्षक: *सुस्ती का मीठा रूप – आलस्य*
*अलबेलेपन के कारण*
01. जो खुद को ज्यादा समझदार समझते हैं (बुद्धि में ज्यादा ज्ञान आ जाने से) वह अलबेलेपन में आ गए हैं। *तीनों कालों का ज्ञान बुद्धि में आने से अपने को ज्यादा समझदार समझते हैं।*
02. हमेशा समझो कि हम *नंबर वन पुरुषार्थी बन रहे हैं। बन नहीं गए हैं।*
03. जहाँ बालक बनना चाहिए वहांँ मालिक बन जाते हो जहांँ मालिक बनना चाहिए वहांँ बालक बन जाते हो।
04. अभी बच्चे रुप का मीठा मीठा पुरुषार्थ तो कर रहे हो। इससे राज्य के अधिकारी तो बन गए। लेकिन *यह ढीला और मीठा पुरुषार्थ अभी नहीं चल सकेगा।*
05. *पुरुषार्थ शक्तिशाली जो होना चाहिए वह शक्ति पुरुषार्थ में नहीं भरी है।*