*अमूल्य रतन* 64
अव्यक्त मुरली दिनांक: 16 जून 1969
शीर्षक: *बड़े से बड़ा त्याग – अवगुणों का त्याग*

*श्रेष्ठ सेवाधारी/तीव्र पुरुषार्थी के लक्षण/सबूत*

1. कोई भी सामने आए तो एक सेकंड में उनको मरजीवा बनाना अर्थात् झट झाटकू से बना देना।
2. एक सेकंड में नजर से निहाल कर देंगे तब सर्विस के सफलता और प्रभाव निकलेगा।

*प्रतिज्ञा* करो आज से हम मरजीवा बन गए हैं फिर जिंदा नहीं होंगे, पुरानी दुनिया में।

*दो बातों की कमी*

01. एकांतवासी कम करते हो।
02. एकता में कम रहते हो।

स्थूल और सूक्ष्म एकांत दोनों की आवश्यकता है।

_एकांत के आनंद के अनुभवी बन जाए तो फिर बाहरमुकता अच्छी नहीं लगेगी।_
*अव्यक्त स्थिति को बढ़ाने के लिए एकांत की बहुत आवश्यकता है।*

त्याग और सेवा के साथ सबसे बड़ा बलिदान – दूसरों के अवगुणों का त्याग करना यह है बड़ा त्याग।