*अमूल्य रतन* 83
अव्यक्त मुरली दिनांक: 17 जुलाई 1969
शीर्षक: अव्यक्त स्थिति बनाने की युक्तियां

*हर वक्त अव्यक्त स्थिति में रहे उसके लिए मुख्य पुरुषार्थ*

आत्माभिमानी बनना। *आत्माभिमानी अर्थात् अव्यक्त स्थिति।*

अपने को मेहमान समझना। अगर मेहमान समझेंगे तो जो अंतिम संपूर्ण स्थिति का वर्णन है वह होगा।
*स्वयं को मेहमान समझने से व्यक्त में होते हुए भी अव्यक्त में रहेंगे।*
मेहमान का किसी के साथ भी लगाव नहीं होता है। “हम इस शरीर में भी मेहमान हैं। इस पुरानी दुनिया में भी मेहमान है।”

*अव्यक्त स्थिति में रहने से*

जितना जितना अव्यक्त स्थिति में स्थित होंगे _कोई मुखसे बोले न बोले लेकिन उनके अंदर का भाव पहले से ही जान लेंगे।_