*अमूल्य रतन* 99
अव्यक्त मुरली दिनांक: 24 जुलाई 1969
शीर्षक: *बिंदु रूप की प्रैक्टिस*

*बिंदी की याद*

01. अगर बिंदी को ही भूल जाएंगे तो सोचो किस आधार पर चलेंगे? क्योंकि *आत्मा के आधार से ही शरीर भी चलता है।*

02. यह नशा होना चाहिए कि “मैं आत्मा बिंदु-बिंदु की ही संतान हूं।” क्योंकि *संतान कहने से स्नेह आता है।*

*अपने को आत्मा समझ कर बैठने से*

01. व्यक्ति से न्यारे हो कर अव्यक्त स्थिति में रह सकेंगे।

02. एक सेकंड तो क्या घंटों इस अवस्था में स्थित होकर अवस्था का रस ले सकते हो।

*वर्षनूतनं ते शुभम् मुदम। उत्तरोत्तरं भवतु सिद्धिदम।*