*अमूल्य रतन* 97
अव्यक्त मुरली दिनांक: 23 जुलाई 1969
शीर्षक: *सफलता का आधार परखने की शक्ति*
*नम्रचित का तख्त*
जिस पर विराजमान होने से सारे काम ठीक कर सकेंगे।
*शक्ति सेना* को *एकरस का तख्त,*
*पांडव सेना* को *निर्माणचित का तख्त।*
इस पर बैठ जिम्मेवारी का ताज धारण कर भविष्य की पदवी बना सकते हो।
*जिम्मेवारी को पूरी रीति संभालने के लिए*
*स्नेही, सरेंडर बुद्धि तथा सर्विस के लिए हर वक्त तैयार* रहना।
इन विशेषताओं को रत्नों की तरह जड़ना।
_यह गुण ताज की मणियाँ है अर्थात् शोभा है।_