*अमूल्य रतन* 127 (29 01 2019)
अव्यक्त मुरली दिनांक: 20 अक्टूबर 1969
शीर्षक: *बिंदु और सिंधु की स्मृति से संपूर्णता*
*संपूर्णता के लिए दो शब्द*
*मैं बिंदु हूंँ और बाप भी बिंदु है*, लेकिन बिंदु के साथ साथ सिंधु है। तो *बिंदु और सिंधु यह बाप और बच्चे का परिचय है।*
*एक बिंदु की याद में सभी बातें आ जाती है*
एक की याद और एकरस अवस्था। एक की ही मत और एक के ही कर्तव्य में मददगार।
*सिर्फ बिंदु और एक उसके आगे विस्तार में जाने की दरकार नहीं। विस्तार में जाना है तो सिर्फ सर्विस प्रति।* अगर सर्विस नहीं तो बिंदु और एक।
सिर्फ यही बातें याद रखो तो संपूर्णता को सहज पा सकते हो।
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