*अमूल्य रतन* 135
अव्यक्त मुरली दिनांक: 25 अक्टूबर 1969

*तीव्र पुरुषार्थी कभी विनाश की डेट का नहीं सोचते।*

*संपूर्णता के संस्कार*

बहुत समय से अगर संपूर्णता के संस्कार होंगे तो अंत में भी संपूर्ण हो सकेंगे। अगर *अंत में बनेंगे तो फिर बापदादा भी अंत में थोड़ा दे देंगे।* जो अभी करते हैं उनको बापदादा भी सतयुग के आरंभ में कहते हैं – “आओ”।

*जितना गहराई से ज्ञान को धारण करेंगे उतनी ही मजबूती आएगी।*

*एकता के साथ एकांतप्रिय बनो*

01. एकांतप्रिय वह होगा जिनका *अनेक तरफ से बुद्धियोग टूटा हुआ होगा और एक का ही प्रिय होगा।* एक का प्रिय होने के कारण एक ही की याद में रह सकता है।

02. सर्व संबंध, सर्व रसनाएं एक से लेने वाला ही एकांतप्रिय हो सकता है।

_अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*