*अमूल्य रतन* 139
अव्यक्त मुरली दिनांक: 17 नवंबर 1969
शीर्षक: *फर्श से अर्श पर जाने की युक्तियां*

*अर्श से फर्श पर फिर फर्श से अर्श पर*

गृहस्थ व्यवहार में जो उल्टी सीढ़ी चढ़ी है उस उल्टी सीढ़ी से नीचे उतरना है। *क्योंकि उल्टी सीढ़ी से उतरे बिना चढ़ नहीं सकते।*

उल्टी-सीढ़ी का कुछ न कुछ जो ज्ञान रहता है उस ज्ञान से आज्ञानी बन और सत्य ज्ञान की पहचान ले ज्ञान स्वरूप बनना है।

*इस देह के भान को छोड़ देना यही लास्ट सीढ़ी है।*

*देहअभिमान को सहज तोड़ने के लिए*

चेक करो की यह देह रूपी वस्त्र किस संस्कार से लटका हुआ है। जब सभी संस्कारों से न्यारे हो जाएंगे तो फिर अवस्था भी न्यारी हो जाएगी।

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