*अमूल्य रतन* 165
अव्यक्त मुरली दिनांक: *25 दिसम्बर 1969*
*विश्व महाराजन के संस्कार*
जैसे बाप सर्व के स्नेही और सर्व उनके स्नेही है। वैसे एक एक के अंदर से स्नेह के फूल बरसेंगे। जब स्नेह के फूल यहांँ बरसेंगे तब जड़ चित्रों पर भी फूल बरसेंगे। तो यहां अपने को देखो *मुझ आत्मा के ऊपर कितने स्नेह के पुष्पों की वर्षा हो रही है।*
*जितने स्नेह के पुष्प उतने द्वापर में पूजा के पुष्प चढ़ेंगे।* लक्ष्य ही रखो कि सर्व के स्नेह के पुष्प पात्र बने।
*स्नेह कैसा मिलता है?*
एक एक को *अपना सहयोग देंगे तो सहयोग मिलेगा।* और जितने के यहांँ सहयोगी बनेंगे उतने के स्नेह के पात्र बनेंगे।
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