*अमूल्य रतन* 159
अव्यक्त मुरली दिनांक: 20 दिसम्बर 1969
*सर्विस में नवीनता*
उन्हों के वाइब्रेशन अपने में नहीं आना, *अपने वाइब्रेशन से उन्हों को अलौकिक बनाना* – यह नवीनता लानी है।
*सर्विस के प्रति संबंध में रहते हुए भी न्यारे रहने का जो मंत्र है* – उसको नहीं भूलना।
*सर्विस के कारण अपने को हल्का करने की भी जरूरत नहीं। वह समय बीत चुका।* वह संबंध जो रखना था सो रख लिया। अब इस रीति संबंध रखने की भी आवश्यकता नहीं।
*प्रजा और वारिस*
*_वाणी से प्रजा बनती है। ईश्वरीय स्नेह और शक्ति से वारिस बनते हैं।_* यह फर्स्ट स्टेज का पुरुषार्थ है। *स्नेह और शक्ति से एक सेकंड में स्वाहा करा सकते हो।*
*वारिस कितने बनाए, प्रजा कितनी बनाई। वारिस भी किस वैरायटी की, प्रजा भी किस वैरायटी की और कितने समय में बने?* इसके भी मार्क्स मिलते हैं।
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