*अमूल्य रतन* 172
अव्यक्त मुरली दिनांक: *22 जनवरी 1970*
*अविनाशी सौगात – दो बातें याद रखना*
शुभ चिंतन और शुभचिंतक।
*शुभ चिंतन से अपनी स्थिति* बना सकेंगे और
*शुभचिंतक बनने से* अनेक *आत्माओं की सेवा* कर सकेंगे।
*बापदादा और बच्चों के स्नेह में अंतर*
कोई कोई बच्चे सोचते होंगे कि हम सभी का स्नेह बापदादा से ज्यादा है। *कोई कोई हैं भी* लेकिन मेजॉरिटी नहीं।
*बच्चों का स्नेह रूप बदलता बहुत है। बापदादा का स्नेह अटूट और एकरस रहता है।*
*तीन रुप*
बापदादा त्रिनेत्री होने के कारण बच्चों को तीन रूपों से देखते हैं – 01. *पुरुषार्थी रूप*, 02. संगम का भविष्य जो *फरिश्ता रूप* है और 03. भविष्य *देवता रूप।*
वैसे ही आप सभी को भी एक दो के यह तीनों रूप देखने में आएंगे। अभी यथायोग्य, यथाशक्ति है। कुछ समय बाद यह शब्द भी खत्म हो जाएगा।
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