*अमूल्य रतन* 184
अव्यक्त मुरली दिनांक: *24 जनवरी 1970*
शीर्षक: *ब्राह्मणों का मुख्य धंधा – समर्पण करना और कराना*

*अविनाशी सुख की प्राप्ति के लिए* _अविनाशी आत्मिक स्थिति में रहो।_

*अव्यक्त स्थिति से होने वाली प्राप्तियां*

_अव्यक्ति आनंद, अव्यक्ति स्नेह, अव्यक्ति शक्ति।_
यह वरदान बिगर मेहनत के सहज ही मिल जाता है।
*वरदान को अविनाशी रखने के लिए* _सदा वरदाता की याद में रहना।_
*वरदाता का साथ है तो वरदान भी साथ है।*

*सृष्टि में सबसे प्रिय वस्तु शिवबाबा को भूलने का कारण*

विस्मृति। विस्मृति का कारण है अपनी कमजोरी। और *कमजोरी आती है मिले हुए श्रीमत पर पूर्ण रीति न चलने से।*
इसलिए हर कर्म करने से पहले *श्रीमत की स्मृति रख हर कर्म करो।* इससे वह कर्म श्रेष्ठ होगा। *श्रेष्ठ कर्म से श्रेष्ठ जीवन स्वतः ही बनती है।*