*अमूल्य रतन* 204
अव्यक्त मुरली दिनांक: *26 जनवरी 1970*
*बच्चों का बापदादा से प्रश्न* – “बच्ची यदि ज्ञान में नहीं चलती है तो क्या करें?”
उत्तर: शादी करनी ही पड़े। *उन्हों की कमजोरी भी अपने ऊपर से मिटानी है।* साक्षी हो मजबूरी भी करना होता है। वह हुआ फ़र्ज। एक होता है लगन से करना, एक होता है निमित्त फ़र्ज निभाना।
*सभी आत्माओं का एक ही समय यह जन्मसिद्ध अधिकार लेने का पार्ट नहीं है।* _परिचय मिलना तो जरूर है, पहचानना भी है लेकिन कोई का पार्ट अभी है, कोई का पीछे।_
फ़र्ज समझकर करेंगे तो माया का मर्ज नहीं लगेगा। नहीं तो वायुमंडल का असर लग सकता है।
*आत्मिक स्नेह का लेन-देन*
*हर आत्मा के पास यह ईश्वरीय स्नेह और सहयोग का यादगार छोड़ना है।* जितना एक दो के स्नेही सहयोगी बनते हैं उतना ही माया के विघ्न हटाने में सहयोग मिलता है। सहयोग देना अर्थात् सहयोग लेना। *परिवार में आत्मिक स्नेह देना है और माया पर विजय पाने का सहयोग लेना है।*
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