*अमूल्य रतन* 195
अव्यक्त मुरली दिनांक: *25 जनवरी 1970*
*संपूर्ण हक लेने के लिए संपूर्ण आहुति देनी है।*
जब कोई भी यज्ञ रचा जाता है तो देखा जाता है, अगर आहुति कम होगी तो यज्ञ सफल नहीं हो सकता। *यहां भी जितना और इतना का हिसाब है।* इसलिए जो भी कुछ आहुति में देना है वह संपूर्ण देना है और फिर संपूर्ण लेना है।
सदैव चेक करो कि कहीं कुछ रह तो नहीं गया, चाहे मन्सा में, वाणी में, कर्म में।
*अभी समाप्ति का समय है अगर कुछ रह गया तो वह रह ही जाएगा। फिर स्वीकार नहीं हो सकता।*
*समय की सूचना*
जैसे समय तेज दौड़ रहा है वैसे खुद को भी दौड़ाना है। समय किसी के लिए नहीं रुकता। *अब ढीले चलने के दिन गए, दौड़ के भी दिन गए, अब है जंप लगाने के दिन।*
*ढीले रह गए तो सतयुगी मंजिल के बजाय त्रेता में जाना पड़ेगा।*
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