*अमूल्य रतन* 185
अव्यक्त मुरली दिनांक: *24 जनवरी 1970*

*यहां देना और वहां लेना*

जितना औरों को बाप का परिचय देंगे उतना ही अपना भविष्य प्रालब्ध बनाएंगे।
इस ज्ञान का प्रत्यक्ष फल और भविष्य के प्रालब्ध प्राप्ति का अनुभव करना है। *वर्तमान के प्राप्ति के आधार पर ही भविष्य को समझ सकते हो।*

*जगतमाता व शिवशक्ति रूप*

जो जगत माता का रूप है उसमें जगत के कल्याण की भावना रहती है।
शिवशक्ति रूप में कोई भी कमज़ोरी नहीं रहेगी।

*यह दोनों रूप स्मृति में रखने से* _मायाजीत_ बन सकेंगे तथा कई _आत्माओं के कल्याण के निमित्त_ बनेंगे।

*नष्टोमोहा बनने के लिए*

सहज साधन है *समर्पण करना।* बाप को जो चाहिए वह करावे। चलाने वाला जैसे चलावे। हमको चलना है।

*नष्टोमोहा बनने से*

जितना नष्टोमोहा बनेंगे उतना स्मृति रूप बनेंगे।