*अमूल्य रतन* 228
अव्यक्त मुरली दिनांक: *26 मार्च 1970*

*उपराम और द्रष्टा अर्थात्*

जो साक्षी बनते हैं उनका ही दृष्टांत देने में आता है। तो साक्षी द्रष्टा का सबूत सामने रखना है। *एक तो अपने बुद्धि से उपराम। संस्कारों से भी उपराम। मेरे संस्कार है इस मेरे पन से भी उपराम।*

*मैं पन और मेरा पन*

*जहां मैं शब्द याद आता है वहां बापदादा याद आए।*
*जहां ‘मेरी समझ’ आती है वहां श्रीमत याद आए।*

मैं और मेरा, तुम और तेरा यह चार शब्द जो है इनको मिटाना है। *इन चार शब्दों ने ही संपूर्णता से दूर किया है।*

मैं-मेरा, तू-तेरा इन्हें खत्म करने के लिए बाबा याद रहे।

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