*अमूल्य रतन* 242 *स्नेही बनने के लिए* विदेही बनना अर्थात् स्नेही बनना क्योंकि बाप विदेही है। ऐसे ही *देह में रहते विदेही रहने वाले सर्व के स्नेही* होते हैं। *अकेलापन और साथ का अनुभव* अगर शिवबाबा साथ है तो अकेलापन लगेगा नहीं। अकेला अर्थात् न्यारा संगठन अर्थात् प्यारा। *अकेला रहना ही साथ है।* *मस्तकमणी बनने के लिए* किसी भी बात में ना शब्द संकल्प में भी न हो। *सदैव हां करने वाले आस्तिक बनो* वही मस्तकमणी है। ऐसे गुण वाले मस्तक में आ जाते हैं। _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |