*अमूल्य रतन* 255 *समीपता* _समीपता अर्थात् एक दो को सम्मान देना।_ *हाँ जी का पार्ट* Serviceable बच्चों को कभी भी कोई का विचार स्पष्ट ना हो तो कभी भी ना नहीं करनी चाहिए। जब *यहां हां जी* करेंगे तब वहां *सतयुग में भी आपकी प्रजा इतना हां जी हां जी करेगी।* अगर *यहां ही ना* करेंगे तो *वहां भी प्रजा दूर से ही प्रणाम* करेगी। *हां जी कहना ही दूसरे के संस्कारों को सरल बनाने का साधन है।* आप सभी का कर्म भविष्य का लॉ है। तो सोच समझ कर शब्द निकले और कर्म हो। _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |