*अमूल्य रतन* 256 *विधि-विधान और विधाता* विधि और विधान दोनों के साथ ही विधाता की याद आती है। *अगर विधाता भी याद रहे तो विधि और विधान दोनों ही साथ स्मृति में रहेगा।* विधाता को भूलने से कभी विधान तो कभी विधि छूट जाती है। साथ रहने से सफलता गले का हार बन जाएगी। *जोड़ना ही तोड़ना है* जितना जितना अपने को सर्विस के बंधन में बांधते जाएंगे तो दूसरे बंधन छूटते जाएंगे। कोई भी कारण है तो उनको हल्का छोड़कर पहले सर्विस के मौके को आगे रखो। _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |