*अमूल्य रतन* 256
अव्यक्त मुरली दिनांक: *07 June 1970*

*विधि-विधान और विधाता*

विधि और विधान दोनों के साथ ही विधाता की याद आती है। *अगर विधाता भी याद रहे तो विधि और विधान दोनों ही साथ स्मृति में रहेगा।*

विधाता को भूलने से कभी विधान तो कभी विधि छूट जाती है।

साथ रहने से सफलता गले का हार बन जाएगी।

*जोड़ना ही तोड़ना है*

जितना जितना अपने को सर्विस के बंधन में बांधते जाएंगे तो दूसरे बंधन छूटते जाएंगे।
*ऐसे नहीं यह बंधन छूटे तो सर्विस में लगे।*
यह जोड़ना ही तोड़ना है। तोड़ने के बाद जोड़ना नहीं होता है।

कोई भी कारण है तो उनको हल्का छोड़कर पहले सर्विस के मौके को आगे रखो।

_*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*