*अमूल्य रतन* 104
अव्यक्त मुरली दिनांक: 15 सितंबर 1969
शीर्षक: *याद के आधार पर यादगार*
*नष्टोमोहा बनने के लिए*
01. नष्टोमोहा तब बनेंगे जब सच्चे स्नेही होंगे।
02. जो भी आसुरी गुण, लोक मर्यादाएं हैं, कर्म बंधन की रस्सियां है, ममता के धागे जो बंधे हुए हैं उन सबको जलाना है।
इन सबको जलाने के लिए *स्नेह की अग्नि, लगन की अग्नि* में पड़कर परिवर्तन लाना है।
*यादगार का आधार किस बात पर है?*
यादगार कायम रखने के लिए पहले परमात्मा की *याद* कायम रखो।
*जितनी जितनी याद उतनी उतनी यादगार।*
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