*अमूल्य रतन* 106
अव्यक्त मुरली दिनांक: 18 सितंबर 1969
शीर्षक: *त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी और त्रिलोकीनाथ बनने की युक्तियां*

*आकर्षण मूर्त बनने के लिए*

अपनी व औरों की *आकृति को न देख अव्यक्त को देखो।* इससे आकर्षण मूर्त बनेंगे।

आकृति के अंदर जो *आकर्षण रूप (आत्मा) है* उसको देखने से ही अपने से और औरों से आकर्षण होगा।

*व्यक्त और अव्यक्त में अंतर, नुकसान और फ़ायदा जानते हुए भी देह-अभिमान में आने का कारण*

देह अभिमान में आने का कारण है *देह का आकर्षण।*

देह के आकर्षण से दूर जाने के लिए *बीच में ऐसी चीज़* (बाप) रखो जो वह आकर्षण न कर सके।