*अमूल्य रतन* 109
अव्यक्त मुरली दिनांक: 18 सितंबर 1969
*आसक्ति (इच्छा) को समाप्त करने के लिए*
कोई भी आसक्ति चाहे देह की, देह की पदार्थों की उत्पन्न हो तो *अपने को शक्ति समझने से* आसक्ति समाप्त हो जाएगी।
*मोह का कारण*
आपका पहला वायदा – *”मैं भी तेरा, मेरा सब कुछ भी तेरा।”* तेरे को मेरे से मिला देते हो।
“जो कहोगे, वह करेंगे, जो खिलाएंगे, जहांँ बिठाएंगे….” यह जो वायदा है इसे भूल जाते हो।
*बाप तो तुमको अव्यक्त वतन में बिठाते हैं*, फिर व्यक्त वतन में क्यों आ जाते हो?
*व्यक्त में होते अव्यक्त में रहो।*