*अमूल्य रतन* 11
अव्यक्त मुरली दिनांक: 4 मार्च 1969
सिर्फ स्वयं ही मालिक बन सेवा करते रहे तो सारे मिल्कियत के अधिकारी बन जाते हैं। *ना छोड़ना है ना पकड़ना है।* पकड़ना अर्थात् जिद से नहीं पकड़ना है; कहां तक, कैसे पकड़ना है यह भी समझना है।
इसलिए मालिकपने और बालकपन दोनों ही समान रहे यह पुरुषार्थ करना है।
*समान रूप से चलने वालों की मुख्य परख*
वह निर्माणता के साथ निरंहकारी, निर्मान और साथ-साथ प्रेम स्वरूप होंगे।