*अमूल्य रतन* 121
अव्यक्त मुरली दिनांक: 03 अक्टूबर 1969
*अव्यक्त स्थिति का सदा एकरस न रहने का कारण*
श्रीमत के साथ साथ कभी कभी मनमत, देह-अभिमानपने की मत, शुद्रपने की मत का यूज करना।
रस भिन्न-भिन्न है तो स्थिति भी भिन्न-भिन्न।
*घबराहट और गहराई*
जब कोई घबराहट की बात आती है तो गहराई में चले जाना तो घबराहट गायब हो जाएगी।
जैसे सागर के ऊपर ऊपर के लहरों में घबराहट होती है लेकिन सागर के गहराई में बिल्कुल शांत और शांति के साथ प्राप्ति भी होती है।
*बिंदी रूप की स्मृति रखने के लिए बिंदी लगाते जाओ। बिंदी लगाते लगाते बिंदी बन जाएंगे।*