*अमूल्य रतन* 124
अव्यक्त मुरली दिनांक: 16 अक्टूबर 1969
जितना *बुद्धि की सफाई* होगी उतना ही *योगयुक्त* अवस्था में रह सकेंगे।
बुद्धि की सफाई अर्थात बुद्धि को *जो महामंत्र मिला हुआ है उसमें बुद्धि का मग्न रहना।*
*हर चलन में अलौकिकता नज़र आने के लिए*
हमेशा यह समझना हम इस शरीर में अवतरित हुए हैं ईश्वरीय सेवा के लिए। यह स्मृति में रखने से हर चलन में अलौकिकता आएगी।
*दृष्टि और वृत्ति को सतोप्रधान बनाने के लिए*
शरीर रूपी सांप को न देख मस्तिष्क के मणि को देखो।
बापदादा के माला के मणि बनना है तो मणि को देखो।
_इसलिए प्रतिज्ञा करो_ *सिवाय मणि के और कुछ नहीं देखेंगे और खुद ही माला के मणि बन सारे सृष्टि के बीच चमकेंगे।*
*प्रत्यक्षता कम निकलने का कारण है अपने आप से प्रतिज्ञा की कमी।*