*अमूल्य रतन* 132
अव्यक्त मुरली दिनांक: 25 अक्टूबर 1969
शीर्षक: *माला का मणका बनने के लिए विजयी बनो*

*परिवर्तन के साथ परिपक्वता*

बाप अविनाशी है, जो खजाना मिला है वह भी अविनाशी है, जो प्रालब्ध मिलती है वह भी अविनाशी है। तो *परिवर्तन भी अविनाशी लाओ।*

*झाटकू पुरुषार्थी बनो*

शक्तियां व देवियां ही बिगर झाटकू बलि स्वीकार नहीं करती है तो क्या बापदादा ऐसे को स्वीकार कर सकता है? *अगर यहांँ स्वीकार न किया तो स्वर्ग में ऊंच पद की स्वीकृति नहीं मिलेगी।*

इसलिए *जो सोचना है वही कहना है, जो कहना है वही करना है।*

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