*अमूल्य रतन* 142
अव्यक्त मुरली दिनांक: 28 नवंबर 1969
*शीर्षक: लौकिक को अलौकिक में परिवर्तन करने की युक्तियां*
*संपूर्ण समर्पण अर्थात् – दृष्टि और वृत्ति में रूहानियत आना*
*दृष्टि और वृत्ति को रूहानी बनाने के लिए*
जिस्म को नहीं देखते हैं तो दृष्टि शुद्ध और पवित्र हो जाती हैं।
जड़ चीज़ को आंखों से देखो ही नहीं तो वृत्ति उस तरफ नहीं जाएगी ।
*रूहानी दृष्टि अर्थात्*
अपने को और दूसरों को भी रूह देखना।
रूह को देखने में बिजी हो जाओ तो कोई आपसे पूछे यह(कर्म) कैसी थी तो आपको मालूम ही नहीं पड़ेगा। लेकिन यह अवस्था तब होगी जब जिस्मानी चीज को देखते हुए उस *जिस्मानी लौकिक चीज़ें हो या लौकिक संबंध हो उनको अलौकिक रूप में परिवर्तन* करेंगे।
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