*अमूल्य रतन* 144
अव्यक्त मुरली दिनांक: 28 नवंबर 1969
*लोगों को प्रिय नहीं लगने का कारण*
सिर्फ देह के संबंधियों से न्यारे होने की कोशिश करते हो तो वह उल्हना देते हैं।
अपने शरीर से न्यारे नहीं हुए हो। *जब तक देह के भान से न्यारे नहीं होंगे तब तक उल्हना मिलती रहेगी।*
*_अपनी दृष्टि, वृत्ति, स्मृति को, संपत्ति को, समय को परिवर्तन में लाओ तब दुनिया को प्रिय लगेंगे।_*
*संपूर्ण समर्पण बनने के लिए तीन बातें*
01. *मन्सा* – देह सहित सभी संबंधों का त्याग। *मामेकम याद करो।*
02. *वाचा* – *मुख से रत्न ही निकले* एक दो को पत्थर नहीं ज्ञान रत्नों का दान दो।
03. *कर्मणा* – *जो कर्म मैं करूंँगा मुझे देख सभी करेंगे।* *जो करेंगे सो पाएंगे*
यह दोनों बातें याद रहने से कर्मणा में बल मिलता है अर्थात् जो सभी के संपर्क में आते हैं उसमें बल मिलता है।
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