*अमूल्य रतन* 158
अव्यक्त मुरली दिनांक: 20 दिसम्बर 1969

*फाइनल पेपर – हर समय निर्बन्धन।* सर्विस के बंधन से भी निर्बन्धन।

*इस पेपर में पास होना अर्थात्*

01. अव्यक्त स्थिति का होना।
02. पता चलेगा कि कहांँ तक उस जीवन की नैया की रस्सियां छोड़ी है।

जैसे कोई और बंधन से मुक्त होते हो वैसे ही सहज रीती शरीर के बंधन से मुक्त होना है। नहीं तो शरीर के बंधन से छूटना बहुत मुश्किल है।
_फाइनल पेपर है अंत मती सो गति।_ *सहज रीती से देह के बंधन से मुक्त होना है पास विद ऑनर की निशानी।*

*शरीर के भान से मुक्त होने के लिए*

01. चोले से इजी़ होने से चोला छोड़ना भी इजी़ होता है।
02. बहुत समय से न्यारापन नहीं होगा तो यह *शरीर का प्यार पश्चाताप में लाएगा।* इसलिए इनसे भी प्यारा नहीं बनना है।

_अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*