*अमूल्य रतन* 170
अव्यक्त मुरली दिनांक: *22 जनवरी 1970*
शीर्षक: *अंतिम कोर्स – मन के भावों को जानना*
*आवाज से परे ले जाने की ड्रिल*
अव्यक्त दुनिया में आवाज नहीं है। इसलिए बाप सभी बच्चों को आवाज से परे ले जाने की ड्रिल सिखला रहे हैं। यह अभ्यास वर्तमान समय बहुत आवश्यक है।
*यही अंतिम कोर्स पढ़ना है।*
जैसे जैसे *अव्यक्त स्थिति में स्थित होते जाएंगे* वैसे-वैसे *नयनों के इशारों से किसी के मन के भाव को जान सकेंगे।*
जैसे बापदादा के सामने जब आते हो तो बिना सुनाए आप सभी के मन के संकल्प, मन के भावों को जान लेते हैं।
*जैसे मुख की भाषा कही जाती है वैसे ही रूहों की रुहान होती है।* जिसे रूह रूहान कहते हैं। अभी यही अंतिम कोर्स पढ़ना है।
_अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*