*अमूल्य रतन* 173
अव्यक्त मुरली दिनांक: *22 जनवरी 1970*
*संपूर्णता में भी नंबरवार*
“माला के 108 मणके जो हैं, तो नंबर वन मणका और 108वाँ मणका दोनों को संपूर्ण कहेंगे कि नहीं?”
*विजयी रत्न अर्थात् अपने नंबर प्रमाण संपूर्णता को प्राप्त।* उनके लिए सारे ड्रामा के अंदर वही संपूर्णता की फर्स्ट स्टेज है।
सतयुग में विश्व महाराजन् तो आठवां भी कहलाएगा लेकिन *फर्स्ट* विश्व महाराजन् की सृष्टि के संपूर्ण सुख *और आठवें महाराजन् की संपूर्णता के सुख में अंतर होगा।*
*बच्चों का प्रश्न – वतन में बैठ क्या करते हो?*
*बच्चों के पुरुषार्थ को देखते रहते हैं और अव्यक्त सहयोग देने की सर्विस करते हैं।*
साकर में तन का हिसाब था। अब इस बंधन से भी मुक्त हैं अपने प्रति नहीं है सर्व आत्माओं के प्रति हैं।
*सदैव यही याद रखो कि अब गए कि गए*
सिर्फ सर्विस के निमित्त शरीर का आधार लिया हुआ है लेकिन *जैसे ही सर्विस समाप्त हो वैसे ही अपने को एकदम हल्का करो।*