*अमूल्य रतन* 183
अव्यक्त मुरली दिनांक: *24 जनवरी 1970*
शीर्षक: *ब्राह्मणों का मुख्य धंधा – समर्पण करना और कराना*

*श्रीमत पर चलने की निशानी*

श्रीमत पर पूर्ण रीति से चलना अर्थात् *हर कर्म में अलौकिकता लाना।*
यह चेक करते रहना कि अलौकिक कर्म कितने किए हैं और लौकिक कर्म कितने किए है?
*अलौकिक कर्म औरों को अलौकिक बनाने की प्रेरणा देंगे।*

*शिवबाबा के वर्से का पूरा अधिकारी*

जो वर्से के अधिकारी बनते हैं, उन्हों का सर्व के ऊपर अधिकार होता है। वह कभी भी देह के, देह के संबंधियों व देह के कोई भी वस्तुओं के *अधीन नहीं होते। अधिकारी होते हैं।*

*अधिकारी बनने से / समझने से*

माया के किसी भी रूप के अधीन होने से बच जाएंगे।

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