*अमूल्य रतन* 19
अव्यक्त मुरली दिनांक: 17 अप्रैल 1969

एक एक श्वास, एक एक सेकंड सफल होना चाहिए। अगर कुछ भी *अलबेलापन रहा तो* जैसे कई बच्चों ने साकार मधुर मिलन का सौभाग्य गंवा दिया वैसे ही यह *पुरुषार्थ के सौभाग्य का समय भी हाथ से चला जायेगा।*

अपनी ऊंच अवस्था में स्थित होकर देखो तो अपने सहित औरों का भी खेल देखने में आएगा।

*महारथीयों का खेल* –
शेर से सहज मुकाबला कर लेते हैं लेकिन चींटी को कुचलने का तरीका नहीं जानते।

*घोड़ेसवारों का खेल* –
हिम्मत है, उत्साह है, अथक भी है, चलते भी अच्छे हैं लेकिन मार्ग की सीन सीनरीयाँ देख उसमें आकर्षित हो जाते हैं।

*प्यादों का खेल* –
राई को पहाड़ बना कर उसमे खुद ही परेशान हो जाते हैं।
*अभी सिर्फ पुरुषार्थ से स्नेह रख पुरुषार्थ को आगे बढ़ाओ।*