*अमूल्य रतन* 203
अव्यक्त मुरली दिनांक: *26 जनवरी 1970*

*सफलता के सितारे या पुरुषार्थ के सितारे?*

अगर यही समझते रहेंगे कि हम तो पुरुषार्थी है तो छोटी-छोटी गलतियों पर अपने को माफ कर देते हो।
जब *स्वयं सफलता स्वरूप* बनेंगे तब दूसरी आत्माओं को *सफलता का मार्ग बता सकेंगे।*

अगर अंत तक पुरुषार्थी कहकर चलते रहेंगे तो *संगम के प्रालब्ध का अनुभव कब* करेंगे?

*निश्चय बुद्धि विजयंती*

जैसा विश्वास रखा जाता है वैसा ही कर्म होता है। निश्चय में कमी होगी तो कर्म में भी कमी हो जाएगी। तो *अपनी स्मृति को श्रेष्ठ बनाओ।*

एक दो के विशेष गुण को देख एक दो को आगे रखना है‌। *किसी को आगे रखना यह भी अपने को आगे बढ़ाना है।*

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