*अमूल्य रतन* 212
अव्यक्त मुरली दिनांक: *02 फरवरी 1970*

*सर्विस में सफलता लाने के लिए दो बातें*

*निशाना और नशा।*
जब निशाना ठीक होता है तो एकदम से किसी को मरजीवा बना सकते हो।
_अगर अपनी स्थिति का भी निशाना_ और दूसरे के सर्विस करने का भी निशाना ठीक होगा और _साथ-साथ नशा भी सदैव एकरस रहेगा तो सर्विस में सफलता ज्यादा पा सकते हो।_

नशा होने से निशाना ठीक कर सकेंगे।

*सर्विसेबल अर्थात्*

एक सेकंड और एक *संकल्प भी बिना सर्विस के ना जाए।* हर सेकंड सर्विस के प्रति हो। *चाहे अपनी सर्विस या दूसरों की सर्विस।*

*मुख्य फ़रमान है निरंतर याद में रहो।*

फ़रमान बरदार का अर्थ ही है फ़रमान पर चलना। _जितना इस फ़रमान को प्रैक्टिकल में लाएंगे उतना ही प्रत्यक्ष फल मिलेगा।_

_*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*