*अमूल्य रतन* 215
अव्यक्त मुरली दिनांक: *05 मार्च 1970*

*व्यर्थ संकल्पों का बीज*

व्यर्थ संकल्प व विकल्प जो चलते हैं तो एक ही शब्द बुद्धि में आता है कि *यह क्यों हुआ,* क्यों से व्यर्थ संकल्पों की क्यू शुरू हो जाती है। इस क्यों शब्द से फिर कल्पना शुरू हो जाता है।

*इस क्यू के समाप्ति के बाद ही संपूर्णता आयेगी।*

*पाण्डव भवन एक जादू का घर*

पांडव दल में इतना बल हो जो *आसुरी संप्रदाय तो क्या लेकिन आसुरी संकल्प भी नहीं आये।* इतना पहरा देना है।
ऐसी रखवाली अगर पांडव करते रहे तो फिर यह पांडव भवन एक जादू का घर हो जाएगा।
जो कैसी भी आत्मा आए, आते ही आसुरी संस्कारों और व्यर्थ संकल्पों से मुक्त हो जाए।

ऐसी सर्विस जब करेंगे तब प्रत्यक्षता होगी।

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