*अमूल्य रतन* 220 अव्यक्त मुरली दिनांक: *23 मार्च 1970* *संस्कारों को मिलाने के लिए* दिलों का मिलन करना पड़ेगा। अनेकों को संस्कार में *आप सामान बनाओ अर्थात् संपूर्ण संस्कार,* अपने संस्कार नहीं। *स्नेह का बंधन व कर्तव्य का बंधन* जैसे स्नेह का बंधन है वैसे कर्तव्य का भी बंधन है। तो यह है कर्तव्य का बंधन। कर्तव्य के बंधन में अव्यक्त रूप में हैं। स्नेह के बंधन में साकार रूप में थे। _*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org* |