*अमूल्य रतन* 230
अव्यक्त मुरली दिनांक: *26 मार्च 1970*

*श्रेष्ठ सर्विस*

जो गायन है नजर से निहाल तो दृष्टि और वृत्ति की सर्विस यह प्रेक्टिकल में लानी है। *वाचा तो एक साधन है लेकिन कोई को संपूर्ण स्नेह और संबंध में लाना इसके लिए वृत्ति और दृष्टि की सर्विस हो।*

इससे एक स्थान पर बैठे हुए एक सेकंड में अनेकों की सर्विस कर सकते हो।

हर एक को अपनी सर्विस होते हुए भी यज्ञ की जिम्मेवारी भी अपनी समझ कर चलना है। सेवा में खुद ऑफर करना है।

*वृत्ति के क्लियर होने से -*

जैसे शुरू में बापदादा का साक्षात्कार घर बैठे हुआ। वैसे अब दूर बैठे *आपकी पावरफुल वृत्ति ऐसा कार्य करेगी* जैसे कोई हाथ से पकड़ कर लाया जाता है। *कैसा भी नास्तिक तमोगुणी, बदला हुआ देखने में आएगा।*

*वाणी के साथ वृत्ति और दृष्टि नहीं मिलती तो सफलता होती ही नहीं।*

_*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*