*अमूल्य रतन* 233
अव्यक्त मुरली दिनांक: *02 April 1970*

*स्पष्ट अर्थात् संतुष्ट*

जब तक *साक्षात् साकार रूप नहीं बने हैं तब तक साक्षात्कार नहीं हो सकता।* इसलिए इस विषय पर अति समीप रत्नों को ध्यान देना है। जितना समीप उतना ही स्वयं भी स्पष्ट और दूसरे भी उनके आगे स्पष्ट दिखाई देंगे।

*जितना जितना जिसका पुरुषार्थ स्पष्ट होता जाता है उतना ही उनकी प्रालब्ध स्पष्ट होती जाती है।*
_जब ऐसी स्थिति होती जाएगी तब *अंतिम स्वरूप और भविष्य स्वरूप* आप सभी की सूरत से सभी को स्पष्ट दिखेगा।_

स्पष्ट अर्थात् संतुष्ट। साफ और सच्चा।

*जिसमें सच्चाई और सफाई है वह सदैव स्पष्ट होता है।* यही एग्जांपल बनना है।

_जो किसी भी बात में एग्जांपल बनते हैं उनको एग्जाम में एक्स्ट्रा मार्क्स मिलते हैं।_

_*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*