*अमूल्य रतन* 239
अव्यक्त मुरली दिनांक: *05 April 1970*

*बापदादा का स्नेह कैसे प्राप्त होता है?*

जितना जितना *बाप के कर्तव्य में सहयोगी बनते हैं उतना उतना स्नेह।* जिस दिन कर्तव्य के अधिक सहयोगी होते हैं उस दिन स्नेह का विशेष अधिक अनुभव होता है।

*स्वमान कैसे प्राप्त होता है?*

जितना *निर्माण* उतना *स्वमान*। जितना जितना *बापदादा के समान उतना ही स्वमान।*
स्वमानता की परख समानता से देखो।

*बापदादा का अपने से साक्षात्कार कराने के लिए*

अपने को दर्पण बनना पड़ेगा। दर्पण तब बनेंगे जब संपूर्ण अर्पण होंगे।
*संपूर्ण अर्पण अर्थात् स्वयं के भान से भी अर्पण।*
जो बाप में विशेषताएं थी साकार में वे अपने में लानी है।

_*अव्यक्त मुरलीयों से संबंधित* कोई भी प्रश्न हो तो संपर्क करें-_ *amulyaratan@godlywoodstudio.org*