*अमूल्य रतन* 244
अव्यक्त मुरली दिनांक: *14 May 1970*
शीर्षक: *समर्पण का गुह्य अर्थ*
*समर्पण किसको कहा जाता है?*
देह अभिमान से संपूर्ण अर्पण होना।
01. *स्वभाव* समर्पण।
02. *देह अभिमान* का समर्पण। देह अर्थात् कर्मेंद्रियों के लगाव का समर्पण।
03. *संबंधों* का समर्पण।
बिंदु रूप की स्थिति सदा साथ है तो वही सदा सुहागिन है।
*सदा अपने सुहाग (भाग्य) को कायम रखने के लिए चार बातें*
01. *जीवन का उद्देश्य सामने हो।*
जीवन का उद्देश्य सामने होने से पुरुषार्थ तीव्र चलेगा।
02. *बापदादा का आदेश।*
बापदादा के आदेश को स्मृति में रखकर पुरुषार्थ करने से सफलता मिलती है।
03. *संदेश।*
सभी को संदेश देना है।
04. *स्वदेश।*
याद रहे कि अब वापस घर जाने का समय है।
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