*अमूल्य रतन* 253
अव्यक्त मुरली दिनांक: *07 June 1970*
शीर्षक: *दिव्य मूर्त बनने की विधि*

*संपूर्णता की निशानी*

संकल्पों को कैच करने की प्रैक्टिस होगी तो संकल्प रहित भी सहज बन सकेंगे।
ज्यादा संकल्प तब चलाना पड़ता है जब किसी के संकल्पों को परख नहीं सकते।

*हर एक के संकल्प को रीड करने की प्रैक्टिस होगी तो व्यर्थ संकल्प ज्यादा नहीं चलेंगे* और सहज ही एक संकल्प में एकरस स्थिति में एक सेकंड में स्थित हो जाएंगे।
*संकल्पों को रीड करना यह भी संपूर्णता की निशानी है।*

*हर एक के भाव को समझने के लिए*

अव्यक्त भाव में स्थित होना है। *अव्यक्त स्थिति एक दर्पण है।* जितना जितना अव्यक्त स्थिति होती है वह दर्पण साफ और शक्तिशाली होता है।

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