*अमूल्य रतन* 255
अव्यक्त मुरली दिनांक: *07 June 1970*

*समीपता*

_समीपता अर्थात् एक दो को सम्मान देना।_
जितना एक दो को सम्मान देंगे उतना ही सारे विश्व आप सभी का सम्मान करेगा।

*हाँ जी का पार्ट*

Serviceable बच्चों को कभी भी कोई का विचार स्पष्ट ना हो तो कभी भी ना नहीं करनी चाहिए।

जब *यहां हां जी* करेंगे तब वहां *सतयुग में भी आपकी प्रजा इतना हां जी हां जी करेगी।* अगर *यहां ही ना* करेंगे तो *वहां भी प्रजा दूर से ही प्रणाम* करेगी।

*हां जी कहना ही दूसरे के संस्कारों को सरल बनाने का साधन है।*

आप सभी का कर्म भविष्य का लॉ है। तो सोच समझ कर शब्द निकले और कर्म हो।

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