*अमूल्य रतन* 26
अव्यक्त मुरली दिनांक: 08 मई 1969
शीर्षक: *मन्सा, वाचा, कर्मणा को ठीक करने की युक्ति*

*निश्चय और पुरुषार्थ में परसेंटेज*
निश्चय में कभी भी परसेंटेज नहीं होती है, ना निश्चय में नंबरवार होते हैं। या तो निश्चय है या संशय है। पुरुषार्थ की स्टेज में नंबर हो सकते हैं। जरा भी संशय चाहे मन्सा में, चाहे वाचा में अथवा कर्मणा में *एक भी संकल्प संशय का है तो संशय बुद्धि कहेंगे।*

*निश्चय बुद्धि वालों की परख*

01. उनके नयन, उनकी वृत्ति उस समय एक ही तरफ होगी।
02. चेहरे से ऐसा महसूस होगा जैसे कि कोई निशानेबाज हो। अर्थात् दृष्टि सदा निशाने पर ही टिकी रहेगी।
आप लोगों को *मुख्य शिक्षा मिलती है एक निशान को देखो अर्थात् बिंदी को देखो।*