*अमूल्य रतन* 32
अव्यक्त मुरली दिनांक: 17 मई 1969

*अधीन और अधिकार*
माया के अधीन होने से बचने के लिए अपने को पहले *संगमयुग के सुख के अधिकारी* और फिर *भविष्य में स्वर्ग के सुखों के अधिकारी* समझना है।

पर-अधीन कभी भी सुखी नहीं रह सकता हर बात में मन्सा, वाचा, कर्मणा दुःख की प्राप्ति में रहते हैं। अधिकारी, अधिकार के नशे और खुशी में रहते हैं।

*खुशी के कारण सुखों की संपत्ति उन्हों के गले में माला के रूप में होती है।* हर वक्त *सतयुगी सुखों की लिस्ट और संगम के सुखों की लिस्ट अथवा सुखों रुपी रत्नों* से खेलते रहो तो ड्रामा के खेल में हार नहीं होगी।